Election2024 :सुधरे मतदाता , नेता मतदाता से ,राष्ट्र स्वयं सुधरेगा
loksabha election 2024
प्रो अनेकांत कुमार जैन
Election2024: लोकतंत्र के सच्चे पहरेदार वे नहीं हैं जो जाति और धर्म की तरह किसी एक नेता,पार्टी या विचारधारा से जन्म से ही जुड़ जाते हैं ,उसमें आसक्त हो जाते हैं और इस चक्कर में उसकी हर गलत चीज को भी स्वीकारते चले जाते हैं ।
राजनीति में अकुलाहट , चिंता या हार का भय यदि किसी हद तक उपस्थित है तो उनके कारण नहीं हैं जो परंपरावादी वोटर हैं ,बल्कि उनके कारण है जो परिवर्तनशील वोटर हैं , फ्लोटिंग वोटिंग ही निर्धारक तत्त्व का निर्माण करती है । तभी तो एक व्यक्ति गली नुक्कड़ से सत्ता के शीर्ष पर पहुंच जाता है और एक शीर्ष से वापस उसी जगह आ जाता है । इसलिए राजनेता उन्हीं के बारे में ज्यादा सोचते भी हैं । यही लोकतंत्र की खूबसूरती है ।loksabha election 2024
मैं स्वयं हमेशा उस प्रत्याशी को वोट देता हूं जो साफ छवि का हो , राष्ट्र भक्त हो ,अपेक्षाकृत ज्यादा ईमानदार हो, जिसके इरादे नेक हों । भले ही वह किसी भी पार्टी, जाति ,धर्म,पंथ,संप्रदाय,भाषा या क्षेत्र का हो ।loksabha election 2024
Election2024:मतदान एक किस्म का समर्थन loksabha election 2024
मेरे स्वयं के मतदान के पीछे यही एक फिलोसोफी काम करती है ,यद्यपि कभी कभी ऐसे प्रत्याशी हार भी जाते हैं , लेकिन मैं तब भी उन्हें ही वोट देता हूं । क्यों कि मैं किसी को जिताने या हराने के लिए मतदान नहीं करता हूं । मैं यह मानता हूं कि मतदान एक किस्म का समर्थन है ।loksabha election 2024
यदि पैसा,पद, जाति,धर्म,संप्रदाय,भाषा और क्षेत्र या किसी अन्य के आग्रह से मैं किसी शराबी,व्यभिचारी,भ्रष्ट और अपराधी को अपना कीमती वोट देता हूं तो यह भी एक किस्म का अपराध है । मुझे उसकी अनुमोदना का दोष लगता है । फिर यदि ऐसा व्यक्ति जीत गया तो उसके पापों का आंशिक भागी मैं भी तो कहलाऊंगा । मैं इस प्रकार की आत्मग्लानि में नहीं जी सकता इसलिए मैं किसी को जिताने या हराने के लिए कभी वोट नहीं देता ।मेरा प्रत्याशी जीत जाए तो खुशी और न जीते तो मैं यह नहीं मानता कि मेरा वोट खराब गया । मुझे तो यह संतोष रहता है कि मैंने गलत का साथ नहीं दिया और उस प्रत्याशी को भी इस बात की प्रसन्नता रहती है कि कुछ लोग तो हैं जो अच्छाई पसंद करते हैं ।loksabha election 2024
जमाना भले ही उसके खिलाफ हो ।
वोट उसे ही जिसकी नीयत साफ हो ।।
Election2024:मतदान करें-मतिदान नहीं
राष्ट्र के सच्चे नागरिक होने के नाते हमें मतदान अवश्य करना चाहिए,लेकिन मतिदान से बचना चाहिए । हम यदि किसी अन्य की बुद्धि से संचालित होते हैं ,क्षणिक लाभ के लिए अपने वोट को बेच देते हैं तो वास्तव में हम अपने राष्ट्र ,समाज और परिवार के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे होते हैं । किसी भी तरह के दुराग्रह से किया गया मतदान हमारे स्वयं के भविष्य के लिए विनाशकारी हो सकता है ।
Election2024:लोकतंत्र की सीमाएं
लोकतंत्र एक स्वस्थ्य परम्परा है ,उसके अपने लाभ हैं ,लेकिन एक समय के बाद वह भी परीक्षा के योग्य तब बन जाता है जब अधिकांश वोटर भ्रष्ट हों । उदाहरण के रूप में देखें तो शराब समाज के लिए एक बुरी चीज है -यह सभी जानते हैं ,लेकिन जहाँ 80 प्रतिशत लोग शराबी हों तो वे रूचि के अनुकूल शराब का समर्थन करने वाले को ही अपना नेता चुनते हैं । यह एक उदाहरण है ,ऐसा प्रत्येक विकृति के साथ संभव है । स्वाभाविक है बहुमत जिस चीज का होगा ,राष्ट्र का निर्धारण भी वैसा ही होने लगेगा । ऐसे समय में राजतंत्र की भूमिका महत्त्वपूर्ण दिखने लगती है ,लेकिन उसके अपने लाभ और दुष्परिणाम हम हजारों वर्षों से देख चुके हैं ।
इसलिए साधु संत,लेखक,विचारक,समाज सुधारक,अध्यापक,दार्शनिक आदि राष्ट्र निर्माण के लिए व्यक्ति निर्माण की बात करते हैं ,हम मतदाता सुधार की बात कर रहे हैं । यह बात करते रहना चाहिए । समाज और राष्ट्र के हित चिंतकों को बिना किसी भय के इस अज्ञान के अंधकार में अपनी ज्ञान रौशनी फैलाते रहना चाहिए –
रौशनी भी गर अंधेरों से डरने लगेगी
तो बताओ ये दुनिया फिर कैसे चलेगी ?
लोग नेताओं को भ्रष्ट कहते हैं ,वे कोई आसमान से तो आते नहीं है ,हमारे बीच के ही प्रतिनिधि हैं ,वे भी एक मतदाता हैं । अतः आज राष्ट्र निर्माण में आवश्यकता है मतदाता सुधार की और निश्चित रूप से यह कार्य कोई राजनैतिक पार्टी नहीं करेगी । loksabha election 2024
Election2024:चुनाव आयोग को भी एक सलाह
मैं तो चुनाव आयोग से भी यह निवेदन करना चाहता हूँ कि आप लोकतंत्र के सजग प्रहरी हैं ।मैं उनका ध्यान एक ऐसे विषय की तरफ दिलाना चाहता हूँ जिस पर प्रायः विचार नहीं किया जाता है ।आपसे निवेदन है कि स्वस्थ्य चुनाव के लिए आप जो जो भी नए प्रयोग करते हैं उसमें एक प्रयोग ‘उचित एवं अहिंसक शब्द प्रयोग ‘का भी प्रारंभ करें ।मेरी सलाह है कि आयोग को शब्द प्रयोग को लेकर पत्रकारिता के लिए भी आचार संहिता लगा देना चाहिए ।
उदाहरण के लिए चुनाव के साथ “लड़ना” जैसे शब्दों का प्रयोग ही उसे युद्ध जैसा विकृत कर देता है ;उसकी जगह चुनाव में “भाग लेना” शब्द का प्रयोग ज्यादा स्वस्थ्य लोकतान्त्रिक मानसिकता है ।और भी अनेक उदाहरण हैं जैसे ‘हमला बोला’……’परास्त किया’ ….”सिंहासन की लड़ाई’….’चुनावी जंग’……’पलटवार’….’भितरघात’…..’रणभेरी’ आदि शब्दों का प्रयोग ऐसा वातावरण बना देता है मानो चुनाव नहीं कोई युद्ध हो रहा हो ।
स्वस्थ्य लोकतंत्र में उम्मीदवार चुनाव में भाग लेते हैं ….लड़ते नहीं हैं ।यह युद्ध नहीं है | हम उम्मीदवार चुनते हैं किसी को जिताते या हराते नहीं हैं ।कुछ निश्चित लोग जो लोगों को ज्यादा उचित लगते हैं वे राष्ट्र सेवा के लिए चुन लिए जाते हैं ।और जो नहीं चुने गए वे अन्य विधाओं से राष्ट्र सेवा करें…ऐसा जनता का मंतव्य रहता है ।आशा है आयोग के सदस्य भी इस विषय पर गंभीरता से विचार करेंगे ।