केंद्र सरकार द्वारा घोषित Classical language Prakrit2 शास्त्रीय भाषा ‘प्राकृत’ का वैभव
प्रो अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली
केंद्र सरकार ने हाल ही में भारत की सबसे प्राचीन भाषा ‘प्राकृत’ को शास्त्रीय भाषाClassical language Prakrit2 का दर्जा प्रदान करके एक ऐतिहासिक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है । प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी स्वयं अपने भाषणों में ,मन की बात में प्राकृत भाषा की सूक्तियों का प्रयोग ,प्राकृत भाषा का प्रयोग करते रहें हैं । उन्होंने संसद में कार्यकाल समाप्ति के समय प्राकृत प्रतिक्रमण का ‘मिच्छामि दुक्कडं’,G-20 के उद्घाटन में प्राकृत शिलालेख का उद्धरण आदि कई उल्लेख किये हैं ।नई शिक्षा नीति में भी भारतीय भाषाओँ को बहुत महत्त्व दिया तथा उसमें प्राकृत भाषा के संरक्षण और प्रयोग की भी नीति निर्धारित की । सरकार का यह कदम सदियों से उपेक्षा की शिकार दम तोड़ती भारतीय भाषाओँ के लिए संजीवनी का कार्य करेगा – ऐसा मेरा विश्वास है । इस बीच सरकार के इस कदम से आम-जन में इस भाषा के प्रति एक अभूतपूर्व जिज्ञासा का प्रादुर्भाव हुआ है ,लोग प्राकृत भाषा और साहित्य से परिचित होना चाहते हैं अतः यहाँ प्राकृत भाषा और साहित्य का एक सिंहावलोकन प्रस्तुत किया जा रहा है ।
प्राकृत भाषा किसे कहते हैं ?Classical language Prakrit2
भारत में अनेक भाषाएं और बोलियां हैं किन्तु उन सभी का केन्द्र बिन्दु उद्गम स्थल एक ही है और वो है स्वाभाविक बोलचाल से आई भाषा – प्राकृत । प्राकृत शब्द की व्युत्पत्ति ‘प्रकृत्या स्वभावेन सिद्धं प्राकृतम्’ अथवा ‘‘प्रकृतीनां साधारणजनानामिदं प्राकृतम्’’ है।जिसका सीधा अर्थ है प्रकृति और स्वभाव से उत्पन्न सर्व साधारण लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा ।
महाकवि वाक्पतिराज (आठवीं शताब्दी) ने प्राकृत भाषा को जनभाषा माना है और इससे ही समस्त भाषाओं का विकास स्वीकार किया है। गउडवहो(93) में वाक्पतिराज ने कहा भी है –
सयलाओ इमं वाआ विसन्ति एक्तो य णेंति वायाओ।
एन्ति समुद्दं चिय णेंति सायराओ च्चिय जलाईं।।
अर्थात् ‘सभी भाषाएं इसी प्राकृत से निकलती हैं और इसी को प्राप्त होती हैं। जैसे सभी नदियों का जल समुद्र में ही प्रवेश करता है और से ही (वाष्प रूप में) बाहर निकलकर नदियों के रूप में परिणत हो जाता है।’
प्राकृत भाषा के भेद –Classical language Prakrit2
प्राकृत भाषा के अनेक भेद हैं जिनका नाम है -१.मागधी प्राकृत(बाद में पालि) २. अर्ध-मागधी प्राकृत ३.शौरसेनी प्राकृत ४.महाराष्ट्री प्राकृत ५.पैशाची प्राकृत ६.चूलिका पैशाची प्राकृत ७..शिलालेखी प्राकृत ८.अपभ्रंश
प्राकृत भाषाओँ से अन्य भाषाओँ का विकास Classical language Prakrit2
भाषा वैज्ञानिकों का अभिमत है कि प्राकृत भाषा के विविध रूपों से भारत की अनेक क्षेत्रीय भाषाओँ का विकास हुआ है यथा –
- महाराष्ट्री अपभ्रंश से मराठी और कोंकणी
,●मागधी अपभ्रंश की पूर्वी शाखा से बंगला,उड़िया तथा असमिया,
- मागधी अपभ्रंश से बिहारी, मैथिली, मगही और भोजपुरी,
- अर्द्धमागधी अपभ्रंश से पूर्वी हिन्दी-अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी,
- शौरसेनी अपभ्रंश से बुन्देली, कन्नौजी, ब्रजभाषा,बांगरू,हिन्दी,
- नागर अपभ्रंश से राजस्थानी, मालवी, मेवाड़ी, जयपुरी, मारवाड़ी तथा गुजराती,
- पालि से सिंहली और मालदीवन , टाक्की या ढाक्की से लहँडी या पश्चिमी पंजाबी,
- शौरसेनी प्रभावित टाक्की से पूर्वी पंजाबी,ब्राचड अपभ्रंश से सिन्धी भाषा (दरद); पैशाची अपभ्रंश से कश्मीरी
भाषा का विकास हुआ है।
प्राकृत भाषा के रोचक तथ्य Classical language Prakrit2
- ‘प्राकृत’ का समृद्ध साहित्य है, जिसके अध्ययन के बिना भारतीय ज्ञान,समाज एवं संस्कृति का अध्ययन अपूर्ण रहता है।
- यह जैन आगमों की भाषा मानी जाती है। भगवान महावीर ने भी इसी प्राकृतभाषा में अपना उपदेश दिया था । अनेक जैन आचार्यों ने प्राकृत भाषा में हजारों ग्रन्थ लिखे हैं जिनकी टीकाएँ संस्कृत भाषा में लिखी गई हैं ।
- दिगंबर जैन परंपरा में जो आगम उपलब्ध है उनकी भाषा शौरसेनी प्राकृत है और श्वेताम्बर परंपरा में जो आगम उपलब्ध हैं उनकी भाषा अर्धमागधी प्राकृत है ।
- यह शिलालेखों की भी भाषा है। कलिंग नरेश सम्राट खारवेल का हाथीगुंफा शिलालेख, नासिक शिलालेख, अशोक का गिरनार शिलालेख आदि अनेक शिलालेख प्राकृत भाषा में ही हैं ।
- कथा साहित्य की दृष्टि से सर्वाधिक प्राचीन रचना बड्ढकहा (बृहत्कथा) भी प्राकृत भाषा में ही लिखी गयी थी।
- संस्कृत नाटकों में प्राकृत के संवाद हैं। वहाँ शिक्षित ऋषि, राजा आदि संस्कृत भाषा का प्रयोग करते हैं तथा रानी, विदूषक, नटी, द्वारपाल, सभी स्त्री पात्र एवं सामान्यजन प्राकृत भाषा में अपने विचार सम्प्रेषित करते हैं। महाकवि कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतलम,शूद्रक का मृच्छकटिकम् आदि इसका उदाहरण है ।
- पादलिप्तसूरी की तरंगवई, संघदासगणि की वसुदेवहिण्डी, हरिभद्रसूरि विरचित समराइच्चकहा, उद्योतनसूरिकृत कुवलयमाला आदि कृतियाँ उत्कृष्ट कथा—साहित्य की निदर्शन है।
- भगवान् राम की कथा विमलसूरी विरचित ‘पउम चरियं’ प्राकृत भाषा में है ।
- जंबूचरियं, सुरसुन्दरीचरियं, महावीरचरियं आदि अनेक प्राकृत चरितकाव्य हैं जिनके अध्ययन से तत्कालीन समाज एवं संस्कृति का बोध होता है।
- महाकवि हाल द्वारा पहली शती में महाराष्ट्री प्राकृत एक महान मुक्तक काव्य ‘गाहा-सत्तसई’लिखा गया जिसका प्रभाव हिंदी के कवि बिहारी की सतसई में दिखता है ।
- आचार्य चण्ड विरचित ‘प्राकृतलक्षण’ प्राकृतव्याकरण का सबसे पुराना ग्रन्थ है।
- विदेशियों ने भी प्राकृत भाषा एवं उसके साहित्य का अध्ययन किया है जिनमें याकोबी, वूल्नर एवं रिचर्ड पिशेल के नाम प्रमुख हैं। रिचर्ड पिशेल ने प्राकृत भाषाओं पर जर्मन में व्याकरण ग्रन्थ लिखा था।
- अध्यात्म,आयुर्वेद ,ज्योतिष,गणित ,भूगोल ,जीवविज्ञान ,भौतिक विज्ञान ,रसायन शास्त्र,आहार विज्ञान,संगीत आदि अनेक विषयों पर प्राकृत साहित्य में प्रचुर सामग्री है ।
- अध्यात्म की दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थ ‘समयसार’आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा शौरसेनी प्राकृत भाषा में पहली शती में रचा गया ।
- ‘अंग-विज्जा’ प्राकृत भाषा में रचित ज्योतिष का प्राचीन और महान ग्रन्थ माना जाता है ।
- खगोल-भूगोल और गणित का प्राकृत भाषा में ग्रन्थ ‘तिलोयपण्णत्ति’ आचार्य यतिवृषभ द्वारा पहली शती में रचा गया विशाल ग्रन्थ है ।
- वेद की भाषा छांदस है जिसमें प्राकृत भाषा के बहुत तत्त्व मौजूद हैं ।
- बुद्ध वचनों की भाषा पालि भी प्राकृत का ही एक रूप है जिसका विकास मागधी प्राकृत से हुआ है ।
- प्राकृत विद्या नामक शोधपत्रिका का निरंतर प्रकाशन कुन्दकुन्द भारती,नई दिल्ली से हो रहा है ।
- प्राकृत भाषा में ही प्रकाशित होने वाला प्रथम समाचार पत्र ‘पागद-भासा’ है जो नई दिल्ली से 2014 से निरंतर प्रकाशित हो रहा है । प्राकृत टाइम्स का प्रकाशन अंग्रेजी में मुंबई से होता है ।
- वर्तमान में भी अनेक जैन आचार्यों एवं विद्वानों के द्वारा प्राकृत भाषा में प्राचीन ग्रंथों की अनेक टीकाएँ,काव्य,महाकाव्य,मुक्तक,कहानियां,कवितायेँ,गीत और लेख-शोध लेख लिखे गए हैं तथा निरंतर लिखे जा रहे हैं ।
- 2023 का पद्मश्री सम्मान प्रो राजाराम जैन जी को प्राकृत भाषा ,आगम साहित्य की सेवा तथा पाण्डुलिपि संपादन के लिए प्रदान किया गया ।
- ज्येष्ठ शुक्ल पञ्चमी के दिन प्राकृत भाषा दिवस मनाया जाता है ।
- 3 अक्तूबर 2024 को भारत सरकार ने प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया है ।
प्राकृत भाषा को पहचानने के स्वर्णिम नियम- Classical language Prakrit2
प्राकृत भाषा बहुत ही सरल भाषा है ,उसको पहचानना और सीखना भी बहुत सरल है । यहाँ हम प्राकृत भाषा के उन मुख्य नियमों को बता रहे हैं जिनसे आप उसे एक दृष्टि में ही पहचान सकते हैं –
१. प्राकृत भाषा में हलंत ( ् ) का प्रयोग कभी नहीं होता । जैसे प्राकृत में ‘मंगलम्’ कभी भी और कहीं भी नहीं लिखा जाता है । हमेशा ‘मंगलं’ लिखा जाता है ।
२. कभी भी विसर्ग ( : ) का प्रयोग नहीं होता है ,उसके स्थान पर ‘ओ’ हो जाता है जैसे ‘रामः’कभी नहीं लिखा जाता हमेशा ‘रामो’ लिखा जाता है ।
३. हमेशा एकवचन और बहुवचन का प्रयोग होता है कभी द्विवचन का प्रयोग नहीं होता ।
४. स्वरों में ‘ऐ,औ,अ:,लृ,ॡ और ऋ, ॠ’ का प्रयोग कभी नहीं होता ।
५. व्यंजन में ‘ञ् ,ङ् , क्ष ,त्र , ष’ का प्रयोग नहीं होता।मागधी प्राकृत को छोड़कर कहीं भी ‘श’ का प्रयोग भी नहीं होता ।
६. ‘न’ के स्थान पर लगभग सभी स्थानों पर ‘ण’ का प्रयोग होता है ।
प्राकृत दिवस मनाने की परंपरा Classical language Prakrit2
भगवान् महावीर के वचन ‘षटखंडागम’ ग्रन्थ में मूल रूप में मिलते हैं ,पहली शती में ज्येष्ठ शुक्ल पञ्चमी के दिन प्राकृत भाषा में आचार्य पुष्पदंत और भूतबली द्वारा यह ग्रन्थ लिखित रूप से पूर्ण हुआ था,उसके पहले तक यह स्मरण शक्ति के माध्यम से श्रुत के रूप में ही प्राप्त हुआ था ।इस दिन को जैन परंपरा में श्रुत पञ्चमी पर्व के रूप में तब से ही मनाया जा रहा है ।
श्रुत पञ्चमी पर्व के दिन को प्राकृत भाषा दिवस के रूप में भी मनाने का संकल्प 1994 में प्रारंभ हुआ । नई दिल्ली में कुन्दकुन्द भारती परिसर में आचार्य विद्यानंद मुनिराज के पावन सान्निध्य में दिनांक 28-30 अक्तूबर 1994 को राष्ट्रिय शौरसेनी प्राकृत संगोष्ठी में विद्वान डॉ.फूलचंद जैन प्रेमी ,जी वाराणसी ने प्रस्ताव रखा कि हिंदी दिवस ,संस्कृत दिवस की तरह प्राकृत भाषा और उसके विकास के लिए *प्राकृत-दिवस* के रूप में श्रुत पञ्चमी ( ज्येष्ठ शुक्ल पञ्चमी) का दिन प्रति वर्ष मनाया जाय ।विद्वान डॉ.रमेशचंद जैन जी,बिजनौर ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया और आचार्य विद्यानंद मुनिराज के आशीर्वाद और प्रेरणा से 1995 से यह दिन प्राकृत दिवस के रूप में भी आज तक मनाया जा रहा है ।
प्राकृत भाषा को समझने सीखने के लिए सरल साहित्य –Classical language Prakrit2
वर्तमान में अनेक विद्वानों के द्वारा प्राकृत भाषा को समझने और सीखने के लिए अनेक सरल साहित्य का प्रणयन हुआ है जिनके माध्यम से इसका परिचय आसानी से प्राप्त किया जा सकता है । उन पुस्तकों में से कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें निम्नलिखित हैं –
- प्राकृत व्याकरण प्रवेशिका – प्रो.सत्यरंजन बनर्जी ,प्रकाशक- BLI,दिल्ली
- प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास -डॉ.नेमिचंद्र शास्त्री, प्रकाशक- तारा प्रिंटिंग प्रेस,वाराणसी
- प्राकृत रचना सौरभ ,प्राकृत अभ्यास सौरभ – प्रो कमलचंद सौगानी, प्रकाशक- अपभ्रंश साहित्य अकादमी,जयपुर
- प्राकृत दीपिका – प्रो सुदर्शन लाल जैन ,प्रकाशक -पार्श्वनाथ विद्यापीठ,वाराणसी
- प्राकृत स्वयं शिक्षक – प्रो प्रेमसुमन जैन ,प्रकाशक -प्राकृत भारती,जयपुर
- प्राकृत भाषा विमर्श – प्रो फूलचंद जैन प्रेमी , प्रकाशक- BLI,दिल्ली
प्राकृत भाषा सीखने हेतु संस्थान-Classical language Prakrit2
प्राकृत भाषा के प्रशिक्षण हेतु जैन समाज के द्वारा संचालित कुछ ऐसे संस्थान ऐसे हैं जो विगत 30-35 वर्षों से निरंतर प्राकृत के कोर्स आयोजित कर रहे हैं ,उनमें से प्रमुख संस्थान हैं –
- अपभ्रंश साहित्य अकादमी ,जयपुर – यहाँ से प्रतिवर्ष पत्राचार द्वारा प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषा का पृथक पृथक प्रमाणपत्रीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम संचालित होता है ।
- भोगीलाल लहेरचंद प्राच्य विद्या संस्थान ,दिल्ली – यहाँ प्राकृत भाषा और साहित्य का प्रति वर्ष एक माह का आवासीय समर स्कूल /कार्यशाला संचालित होती है ।
- बाहुबली प्राकृत विद्यापीठ ,श्रवणबेलगोला,कर्नाटका – यहाँ से प्राकृत भाषा के अनेक कोर्स संचालित होते हैं ।
- पार्श्वनाथ विद्यापीठ ,वाराणसी – यहाँ भी प्रतिवर्ष प्राकृत भाषा की कार्यशालाएं आयोजित होती हैं ।
इनके अलावा भी कई नई संस्थाएं प्राकृत का ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों प्रशिक्षण दे रहीं हैं । उनकी एक लम्बी सूची है ।
- जैन विश्व भारती संस्थान,लाडनूं – यहाँ से प्राकृत भाषा में BA और MA की पढ़ाई होती है |
- कुन्दकुन्द भारती ,प्राकृत भवन,नई दिल्ली – यहाँ से प्राकृत विद्या नाम की शोध पत्रिका प्रकाशित होती है |
Prof Anekant Kumar Jain
Editor – PAGADA-BHASA (The first news paper in Prakrit language )
Prakrit Vidya Bhavan, JIN FOUNADATION ,New Delhi
9711397716